अपनी बेटी को मजबूत बनाने के लिए आप क्या करेंगे?
इस सवाल का जवाब मैं मेरे ख़ुद के अनुभव से देना चाहती हूँ। मेरे माता-पिता ने तीन बेटियों को इस तरीक़े से बड़ा किया है की उसकी मिसाल हमारा पूरा परिवार, रिश्तेदार और पड़ोसी भी देते है।
अब मेरे एक बेटी है और जब मैं उसे मज़बूत बनाने के बारे में सोचती हूँ तो याद करती हूँ की मेरे माता-पिता ने ऐसा क्या अलग किया जिससे हम मज़बूत बने।
कुछ निम्नलिखित बातें है जिससे हम मज़बूत बने है।
एक बच्चा चाहे वो बेटी हो या बेटा स्वयं को सबसे पहले अपने माता-पिता की नज़र से देखता है और हमारे माता-पिता ने हमेशा हमें सम्मान की नज़रों से देखा। उनकी नज़रों ने हमेशा हमें महसूस करवाया की हम तीनो अच्छे इंसान है और अपनी मंज़िल हासिल करने की क़ाबिलियत रखते है।
उन्होंने कभी ये नहीं कहा की हम तुम्हें बेटे की तरह रखते है क्योंकि उन्हें पता है की बेटी हो या बेटा सबको अपनी ज़िंदगी में सफल होने का और मनचाहा कार्यक्षेत्र और जीवनसाथी चुनने का हक़ है। मुझे लगता है की ये वाक्य "बेटियों को बेटों की तरह रखते है" अपने आप में एक ऐसा वाक्य जो की दोनो लिंगो में फ़र्क़ दर्शाता है। तो, अपने माता- पिता की तरह मैं भी अपनी बेटी को "बेटी" बोल के ही मज़बूत बना रही हूँ।
उन्होंने अपने ज़िंदगी की चुनौतीयो और असफलताओ को हमें बताया और ये भी बताया की कैसे चुनौतियों का सामना किया।
हमारे माता-पिता ने अपनी सोच को मज़बूत बनाया तो उनकी बेटियाँ अपने आप मज़बूत हो गयी।
उन्होंने कभी अपनी सोच को दूसरों की सोच से नहीं तौला- जैसे की जब हम तीनो बहनो में से कोई भी मोटरसाइकल लेके निकलता था तो बहुत से लोगों को लगता था की हमें बहुत छूट मिली हुई है और हम शादी नहीं करेंगे या बच्चे नहीं सम्भाल पाएँगे। मगर हमारे माता-पिता को पता था की हमारी बेटियाँ बिंदी भी लगा सकती है, बुलेट भी चला सकती है और बच्चे को भी सम्भाल सकती है।
ज़िम्मेदारी चाहे छोटी हो या बड़ी, वो बेहिचक हमें सौंप देते थे। उन ज़िम्मेदारियों ने हमें बहुत कुछ सिखाया जो की जीवन में अब भी बहुत बार काम आता है।
उन्होंने अपनी बेटियों को समझा और उनका समर्थन किया चाहे वो खाना बनाने में रुचि रखें या फिर कोई बाइकिंग रैली में जाने को कहे उन्होंने सही सलाह देते हुए हमेशा हम लोगों पर भरोसा किया।
मेरी माँ ने हमें हमेशा नए कौशल सीखने को प्रोत्साहित किया और आज भी करती है।
उन्होंने हमसे ऐसा रिश्ता बनाया की हम तीनो उन्हें सबकुछ बताँते थे। इतना आसान नहीं है बच्चों के साथ दोस्ती करना मगर मज़बूत माता-पिता ऐसा कर पाते है।
हर बुरी मुसीबत में कभी भी उनको बुलाने या बताने से डर नहीं लगा।
आज जब मैं ३० साल की हो गयी हूँ तब भी उनसे काफ़ी सलाह लेती हूँ और वो मुझे अभी भी मज़बूत कर रहे है। क्योंकि एक बार जो माता पिता बन गए तो ज़िंदगी भर के लिए माता-पिता बन गए।
तो अगर मैं संक्षिप्त में कहूँ तो "मज़बूत बने रहिए बच्चों के सामने, बच्चे अपने आप मज़बूत बन जाएँगे"।
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